साहब पर सवाल क्या उठा, पत्रकार को भेज दिया नोटिस – अब कलम बोलेगी या कानून....?
रतनपुर बिलासपुर छत्तीसगढ़: रतनपुर की पावन धरती पर इन दिनों सुशासन से ज्यादा चर्चा एक "नोटिस" की है। हां, वही नोटिस, जो एक पत्रकार को साहब (ASI नरेश गर्ग) द्वारा भेजा गया — कारण? खबर में साहब के ऊपर लेन-देन का जिक्र कर दिया गया। अब सवाल यह नहीं है कि आरोप सही है या गलत, सवाल यह है कि "अगर साहब दूध के धुले हैं तो इतनी जलन क्यों?"
पत्रकार ने खबर में लिखा क्या था? महज इतना कि कुछ शराब माफिया पकड़े गए, फिर बीस हजार के लेन-देन की चर्चा के बाद छोड़ दिए गए — और दो दिन बाद फिर वही तस्कर धरे गए। खबर छपी और साहब का ईमान चिढ़ गया। जवाब में आया "पंजीकृत कानूनी नोटिस", जिसमें पत्रकार से 7 दिन में सबूत मांगे गए और पत्रकारिता की डिग्री तक का ब्यौरा भी। अब पत्रकार भी कह रहा है – “साहब से जब से आमद हुई है, तब से यही खेल जारी है।”
पत्रकार बोले – अब मामला जाएगा कप्तान दरबार में!
अब पत्रकार महोदय भी आर-पार के मूड में हैं। उन्होंने कहा है कि वह समस्त सबूतों और दस्तावेजों के साथ पूरे मामले को जिला पुलिस कप्तान के समक्ष पेश करेंगे। उनका साफ कहना है – “मैं खबर नहीं, सच लिखता हूं... और अब सच सामने आएगा।”
कानूनी नोटिस से ज्यादा, चर्चा साहब की "भावनाओं" की हो रही है।
साहब के वकील ने लिखा है कि पत्रकार की खबर से साहब को मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक आघात पहुंचा है। ऐसा आघात, जैसे न्याय की देवी ने आंखों की पट्टी हटाकर सीधा खबर पढ़ लिया हो!
और अगर साहब पाक-साफ हैं, तो नोटिस की भाषा में इतनी तल्खी क्यों?**
पत्रकारिता पर तंज कसते हुए पूछा गया है – पत्रकार ने पढ़ाई कहां से की? किस संस्था से मान्यता ली? सवाल ये नहीं कि खबर की सच्चाई क्या है, सवाल ये है कि अब “कलम से जवाब नहीं, डिग्री से लड़ाई लड़ी जाएगी?”
रतनपुर की जनता इस तमाशे को गौर से देख रही है। अब देखना ये है कि इस न्याय बनाम पत्रकारिता के खेल में सच की जीत होती है या फिर कानून की भाषा में दबा दी जाती है पत्रकार की आवाज।



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